लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-31)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
"पता नहीं किसने हम प्यार के पंछियों को जुदा कर दिया । हमारी बददुआएं इस राज्य को आबाद नहीं रहने देगी।"
इतना कहकर परी शांत हो गयी सभी देख रहे थे।नयना और राज के चेहरे के हाव-भाव बदल रहे थे तभी राज बोला,"चंद्रिके ! देखो मैंने अपना वादा पूरा किया । लो मैं आ गया अपनी चंद्रिका के लिए इस जन्म में भी।"
"तुम्हें आना ही था " कैसे नहीं आते जब मुझे तुमसे बिछड़कर चैन नहीं है तो तुम्हें कैसे होता।बस गम इसी बात का है कि हम ये नहीं जान पाते कि हमें किसने मारा?"
"मैंने और सुमंत्र ने "
सभी उस ओर देखने लगे जहां से आवाज आई थी सभी हैरान रह गये ये……ये नयना बोल रही थी।
इसका मतलब नयना में ही राजकुमारी कजरी का जीव था ।तभी वह दोपहर को राज से कह रही थी कि मुझे ये कहानी जानी पहचानी सी लगती है।
"हां …हां मैंने ही। राज नर्तकी चंद्रिका को खंजर मारा था। मैंने अपनी एक दासी जो मालिन का काम भी करती थी उसे देवदत्त की गुप्तचरी के लिए लगा रखा था ।
उस दिन नाग पंचमी की पूजा चल रही थी सभी बहुत व्यस्त थे । मैं भी पूजा में बैठी हुई थी तभी मेरी दासी ने आकर मुझे कहा कि मालिन शन्नो आप से मिलना चाहती है और वो कह रही है अभी तत्काल मिलना है ।
मैं समझ गई कि ज़रूर कोई विशेष बात है तभी मैं पूजा छोड़कर दासी के साथ अपने कक्ष में आई तो। मैंने देखा शन्नो बुरी तरह हांफ रही है और मुझे देखकर बोली,*राजकुमारी जी ,मैंने अभी अभी सुमंत्र जी को देवदत के कक्ष में लगने वाले झरोखे से झांकते हुए देखा था उसके थोड़ी देर बाद वो चोरों की तरह मुंह छिपा कर भागी रहे थे।मुझसे रहा नहीं गया और जब मैंने झरोखे से देखा तो……."
"तो क्या ? करमजली कुछ तो बोल ।"
"देवदत जी की कमर में खंजर घुपा हुआ था और राज नर्तकी चंद्रिका पागलों की तरह इधर-उधर पूरे कक्ष में दौड़ रही थी और विलाप कर रही थी।"
जब मैंने। ये सुना कि मेरा देवदत्त मर गया है वो भी उस चंद्रिका के कारण तो मेरा खून खौल उठा और मैंने खंजर अपने आंचल में छुपाया और देवदत्त के कमरे की ओर दौड़ पड़ी और आव देखा ना ताव मैंने खंजर दूर से चंद्रिका की पीठ का निशाना लगाकर खंजर फैक मारा। जिसके कारण मेरे देवदत्त के प्राण गये उसे ज़िंदा रहने का कोई हक नहीं था।
तभी जैसे कोई प्रलय आ गयी ।आंधी तूफान बिजलियां कड़कने लगी और मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी और जोरदार धरती हिंदी और कुंदनपुर ज़मीन में समा गया।हम सब ही जिंदा दफन हो गये जमीन में।शायद दो प्यार करने वालों की हाय लगी थी हमारे राज्य को।"
इतना कहकर नयना खड़ी हो गयी और भावों के अतिरेक के कारण खड़ी खड़ी ही फर्श पर धड़ाम से गिर गयी।तभी भूषण प्रसाद दौड़े और नयना को। गोद में उठाकर स्टडी रूम से बाहर आ गये और उसे सोफे पर लिटा दिया।
शास्त्री जी उठ खड़े हुए और बोले,"भूषण प्रसाद जी मेरा काम खत्म हुआ अब आप को सब पता चल गया है । जहां तक मेरा मानना है कि दो प्यार करने वाले अगर उस जन्म में नहीं मिल पाये तो उन्हें इस जन्म में मिला देना चाहिए।आप राज और परी की शादी करवा दें । बाकी आप की मर्जी।"
भूषण प्रसाद अभी भी नयना की बातें सुनकर सदमे में थे ।वो फूट फूटकर रोने लगे और बोले," मुझे भगवान ने मेरे कर्मों की सजा दे दी है । मैं जो चीज राज के लिए करने चला था वो अब मेरी बेटी के साथ सच हो रहा है ।"
तभी राज और परी व किशनलाल सभी बाहर हाल में आ गये राज भी कल रात से बहुत टेंशन में था वो भी जानना चाहता था कि अंकल ने परी को चंद्रिका बनने का नाटक करने को क्यों कहा?
वह बोला,"अंकल मैंने कल किशनलाल ओर उसकी पत्नी की बातों को सुन लिया था कि आपने परी को चंद्रिका बनाकर मेरे पास भेजा था। क्यों?"
"बेटा मैं तुम्हें आज सारी सच्चाई बताता हूं। दरअसल मुझे कुछ दिनों से जुए की लत लग गई थी । मैं लगातार पैसा हारता जा रहा था मेरे सिर पर बहुत बड़ा कर्ज हो गया था।जिसके कारण मेरी रातों की नींद हराम हो चुकी थी उन दिनों तुम्हारी विदेश में पढ़ाई खत्म हुई ही थी तभी मुझे यहां महल के खंडहरों की खुदाई का काम मिल गया और एक दिन हमारे कर्मचारियों को एक तहखाना मिला ।जब हम उसके अंदर गये तो मैं तस्वीर देखकर हैरान रह गया कि तुम्हारी तस्वीर तहखाने में कैसे? साथ में बैठी हुई लड़की भी बहुत प्यारी थी ।
एक दिन मैं साइट पर जा रहा था कि तभी मैंने किशनलाल को अपनी बेटी के साथ जाते देखा । मैं हैरान रह गया क्योंकि तस्वीर वाली लड़की बिल्कुल किशनलाल की बेटी से मिलती थी ।तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया और मैंने किशनलाल को ये बात बताई कि तुम्हारी बेटी को थोड़ा सा नाटक करना होगा जिसके बदले तुम्हें अच्छी रकम मिलेगी।"
तभी किशनलाल भी रोने लगा और बोला,*बाबू साहेब हमें माफ कर दो हमने तो परी को सिर्फ आपको उस दिन जब आप गांव आ रहे थे तब चंद्रिका बनकर मिलने को बोला था पर ये तो वास्तव में ही चंद्रिका का रूप है सरकार।"
भूषण प्रसाद बोले,"बेटा बस अब और शर्मिंदगी नहीं उठानी । मैं नयना को लेकर यहां से दूर चला जाता हूं तुम परी के साथ अपनी सुखी गृहस्थी बसा कर रहो।"
"ऐसे कैसे चले जाएंगे आप हम जाने देंगे तब ना । हमारी शादी में हमें आशीर्वाद तो आप का ही चाहिए।" अब की बार ये बातें परी बोल रही थी ।
"अंकल अगर आप मुझे इन से मिलने के लिए उस सुनसान जंगल में नहीं भेजते तो शायद मैं बरसों अपने प्यार को पाने के लिए तड़पती रहती ।"
तभी राज बोला,"हां अंकल आप मुझे एक बार कह देते ।बेटे क्या बाप की तकलीफ़ नहीं समझते।आप कहीं नहीं जा रहे हो ।हम सब मिलकर यही रहेंगे और नयना के उच्च शिक्षा दिलाने के लिए मैंने पहले ही विदेश में बात कर ली है।"
सभी खिलखिला कर हंस पड़े।
कुछ दिनों बाद कोठी में शादी की तैयारियां चल रही थी और नयना अपना बैग पैक कर रही थी क्योंकि कल तक का समय था उसके पास कर राज और परी की शादी थी वह शादी अटेंड करके लंदन की फ्लाइट पकड़ने वाली थी ।
"मोटी खाने का सब कुछ था लेना ।देखना वहां कम ना पड़ जाएं कहीं हम देखें हमारी मोटी नयना स्लिम होकर विदेश से लौटी है।"
इतना सुनते ही नयना उसे मारने दौड़ी।वह दौड़ते हुए परी के पीछे छिपे गया ।तभी नयना परी को उलाहना देते हुए बोली,*समझा लो अपने प्रियतम को ,मार खायेगा मुझसे।
हां एक बात और राज को तुम्हें सौंप कर जा रही हूं ये जरा भी दुःखी हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं……"
सभी खिलखिला कर हंस पड़े।
(इति)